सुप्रीम कोर्ट ने Corporate को दिया बड़ा झटका…

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कॉरपोरेट जगत (Corporate World) को बड़ा झटका लगा है। अब अनिल अंबानी समेत अन्य डिफॉल्टरों की मुश्किलें बढ़ने वाली है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को सही ठहराया है, जिसने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को डिफॉल्ट करने वाले कॉर्पोरेट देनदार के प्रमोटरों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है। शीर्ष अदालत के इस आदेश ने कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के समापन के बाद ऋणदाताओं के लिए व्यक्तिगत गारंटीकर्ताओं से शेष ऋण की वसूली के लिए रास्ता साफ हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना को ठहराया सही

दरअसल अनिल अंबानी, कपिल वधावन, संजय सिंघल और वेणुगोपाल धूत आदि उद्योगपतियों ने 15 नवंबर, 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसमें इंसोल्वेंयी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC के प्रावधानों का दायरा प्रोमोटो तक के लिए बढ़ा दिया गया था) जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ द्वारा दिए गए इस फैसले में वर्ष 2019 की। इस अधिसूचना को कानूनी और वैध करार दिया गया है।

SBI कर सकता है दिवालियापन की कार्रवाई

अब SBI अनिल अम्बानी के खिलाफ दिवालियापन की कार्रवाई कर सकती है। हालांकि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने दिवालियापन की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराते हुए कार्रवाई का आदेश जारी किया है।

SBI ने दिल्ली हाईकोर्ट में लगाई थी याचिका

दरअसल, अनिल अंबानी की तीन कंपनियों पर बैंकों का 49,000 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। पिछले साल भारतीय स्टेट बैंक ने अनिल अंबानी के 3 रिलायंस ग्रुप को ‘फ्रॉड’ बताया था। देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने दिल्ली हाईकोर्ट में अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की तीन कंपनियों के खिलाफ याचिका दायर की थी। बैंक ने हाईकोर्ट से कहा था कि इनके ऑडिट के दौरान फंड का दुरुपयोग, हस्तांतरण और हेरा-फेरी की गई है। इसकी CBI जांच की जाए। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने SBI से यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

बैंक गारंटरों से वसूल सकता है धन

दरअसल, कर्ज लेने वाला व्यक्ति अपने दोस्तों या करीबी रिश्तेदारों को गारंटर बनाता है। बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लोन देने के वक्त कर्ज लेने वाले और गारंटर में कोई खास अंतर नहीं होता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि EMI कर्ज लेने वाले के खाते से कटती है। अगर लोन लेने वाला व्यक्ति समय पर किस्त नहीं चुकाता है तो एक निश्चित समय के बाद बैंक गारंटर को पकड़ता है।

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